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Agency | Apr 27, 2021 | Motor Vehicle Act
अनादरित चेक का नोटिस निर्धारित समय सीमा में जारी
नहीं होने पर धारा 138 के अंतर्गत कार्यवाही नहीं
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रामकृष्ण गौतम के समक्ष एक याचिका परिक्राम्य अधिनियम 1981 की धारा38 तथा क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1973 की धरा 482 के अंतर्गत प्रेम सागर सोनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य संबंध्ति प्रकरण में विचारार्थ प्रस्तुत की गई। किसी चेक के अनादरित होने के 30 दिन की अवधि में नोटिस जारी किया जाना चाहिए तथा भुगतान की मांग की जानी चाहिए। इसी से धारा138 के अंतर्गत दंडात्मक कार्यवाही की जा सकती है। वर्तमान प्रकरण में चेक अनादरण की सूचना प्राप्ति के 30 दिन के अंदर नोटिस जारी नहीं किया गया। च अनादरित होने की सूचना 30.03.2011 को प्राप्त हुई थी तथा नोटिस 21.05.2011 को जारी किया गया था। यह 30 दिन की अवधि अधिक है।ऐसे हालात मैं ट्रायल न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया गया, वह गलत नहीं हैं
अपीलेंट के अधिवक्ता ने कहा कि प्रतिपक्षी संख्या दो ने 8 लाख रुपये की राशि अर्नेस्ट मनी के रूप में प्राप्त करके स्थायी सम्पत्ति की बिक्री का सौदा अपीलेंट के पक्ष में 10.09.2010 को किया था तथा एक सप्ताह के दौरान विक्रय प्रपत्र तैयार करने का आश्वासन दिया था। 18.09.2010 को पुनः 2 लाख रुपए की मांग की गई, लेकिन इसको स्वीकार नही किया गया तथा जो ध्नराशि भुगतान की गयी थी, उसको वापस लौटाने की मांग की गई तथा प्रतिपक्षी संख्या दो ने पुनर्भुगतान के लिए समय की मांग की। इसके पश्चात उसके द्वारा दो चेक 05.10.2010 को 2 लाख रुपए तथा एक लाख रुपए का पुनर्भुगतान के रूप में दिया गया तथा शेष बकाया 5 लाख रुपए की राशि का भुगतान नकद करने का आश्वासन दिया गया। दोनों चेक इलाहाबाद बैंक की शाखा दौलताबाद में भुगतान हेतु प्रस्तुत किए गए, लेकिन बिना भुगतान के अनादरित होकर लौट आए। पर्याप्त ध्नन नहीं होने के मेमो के साथ चेक लौट कर आए तथा इसकी जानकारी 30.03.2011 को हो गई थी। विपक्षी को एक नोटिस 21.05.2011 को प्रेषित किया गया, लेकिन प्रतिपक्षी द्वारा नोटिस का कोई जवाब भुगतान द्वारा नहीं दिया गया तथा नोटिस प्राप्त होने पर यह आश्वासन दिया गया कि एक माह की अवधिमें पूरी राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। अपीलेंट ने एक माह तक प्रतीक्षा करने के पश्चात पुनः विपक्षी से भुगतान की मांग की, लेकिन वह प्रतिदिन आश्वासन ही देता रहा, उसके पश्चात 04.07.2011 को शिकायत दर्ज की गई तथा धरा 138 के अंतर्गत कार्यवाही की मांग न्यायालय से की गई, लेकिन ट्रायल न्यायालय ने इस वाद को खारिज कर दिया, क्योंकि नोटिस एक माह की अवधिमें जारी नही किया गया था। इसके परिणामस्वरूप यह याचिका दायर की गई। न्यायालय के समक्ष प्रतिपक्षी के अधिवक्ता ने इस याचिका का विरोध् करते हुए कहा कि धरा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत यह कार्यवाही स्वीकार नहीं की जा सकती। इसके साथ ही धरा 372 व धरा 378 के अंतर्गत अपील दायर किए जाने का निर्णय किया गया।
न्यायालय ने ट्रायल न्यायालय के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि शिकायत परिक्राम्य अधिनियम की धारा 142 के अंतर्गत समय पर नहीं की गई तथा चेक अनादरित होने के एक माह के अंदर धारा 138 का नोटिस जारी किया जाना चाहिए था। वह समय पर जारी नहीं किया गया। धरा 138 के अंतर्गत अपराध् के लिए चेक किसी वर्तमान दायित्व के बदले में जारी किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर ही धारा 138 के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है। परिक्राम्य अधिनियम की धारा 142 पुनः यह स्पष्ट करती है कि शिकायत करने के लिए पुनः एक माह का प्रावधान किया गया है अर्थात शिकायतकर्ता अगर न्यायालय को संतुष्ट कर देता है तो अवधि को एक माह के लिए बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए शिकायतकर्ता को समय पर शिकायत नहीं किए जाने के सम्बन्ध् में पर्याप्त कारणों के साथ संतुष्ट करना होगा। वर्तमान प्रकरण में विलंब को लेकर कोई उचित कारण नहीं बताया गया है। केवल यह कहा गया है कि दोषी व्यक्ति बार-बार भुगतान का आश्वासन देता रहा है और इस सम्बन्ध् में किसी प्रकार के दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध् नहीं है। न्यायालय ने कहा कि चेक अनादरित होने की सूचना प्राप्त होने के 30 दिन की अवधिमें नोटिस जारी किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर ही धरा 138 के अंतर्गत किसी दंडात्मक कार्यवाही का आधर बनाता है। इसके लिए यह अनिवार्य शर्त है कि नोटिस जानकारी मिलने के 30 दिन की अवधिमें जारी किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान प्रकरण में 30 दिन की अवधिमें कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है। यह स्वीकार किया गया कि चेक अनादरित हुआ तथा उसकी जानकारी 30.03.2011 को प्राप्त हो गयी थी तथा नोटिस 21.05.2011 को जारी किया गया था। यह अवधि 30 दिन से अध्कि है। अपराध् की यह शर्त इस प्रकरण में लागू नहीं होती है। ऐसे हालात में ट्रायल न्यायालय द्वारा प्रकरण को खारिज करने का निर्णय अनुचित व न्याय विरुद्ध नहीं है। उच्च न्यायालय का धरा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत आधिकारिक न्याय की रक्षा के लिए है, लेकिन इसका उपयोग न्यायालय ऐसे हालात मे कर सकता है। जब यह सिद्ध हो जाता है कि ट्रायल न्यायालय के द्वारा इस प्रकरण में अन्याय किया गया है, न्यायालय ने अपील को खारिज किया।